Harivansh Rai Bachchan's Poem | हरिवंशराय बच्चन की कविता | sad & depth

मैंने जब सबसे पहले कविता लिखना शुरू किया तो मैंने खुदसे कहा कि अगर लिखना है तो आदरणीय हरिवंशराय बच्चन की तरह ही लिखना है! खैर मैं उनके पाँव की धूल भी नहीं हूँ पर लिखते वक्त हमेशा उनका ख्याल जरुर आ जाता है! हरिवंशराय बच्चन साहब की हर रचना हिंदी को शोभित करती बिंदी का काम करती है, हिंदी भाषा और कविता को जो सही मायने में आसमान पर लेकर गए उनमें एक ऊँचा नाम हरिवंशराय बच्चन सुनहरे अक्षरों में आता है! इस महान रचनाकार के लिए मेरे पास शब्दों की कमी हो सकती है परन्तु भाव अनंत है! चलिए अब अधिक वार्तालाप न करते हुए पूजनीय हरिवंशराय बच्चन साहब की कविता की ओर रुख करते है!

हरिवंशराय बच्चन

ये कविता मेरे मन के बहुत निकट है...उदासी में भी हकीकत को स्वीकार कर लेना, नकारात्मकता  में भी सकारात्मकता  की ओर बढ़ना और बीते कल को जान कर जीना, ये सभी रस हमें इस कविता में प्राप्त होते है

क्या भूलूं, क्या याद करूँ मैं 


अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!

याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!

दोनो करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आबाद करूं मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!

कठिन शब्दों के अर्थ 
उन्माद- उन्माद, पागलपन, सनक, धुन, झक, ख़ब्त
अवसाद- मस्तिष्क का वह रोग जिसमें मन और बुद्धि का संतुलन बिगड़ जाता है
रजनीरात, रात्रि, निशा 
सुधि-  चेतना, याद, ज्ञान, होश


कविता पर मेरे विचार:-

उपरोक्त कविता में हरिवंशराय बच्चन साहब ने अपने मन के भाव उड़ेल के रख दिया है, हर पंक्ति हर शब्द तारीफ़ के योग्य है! हकीकत में बीते हुए क्षणों में ऐसे न जाने कितने पल आये और बीत गए जब हमने कुछ अवसर खो दिए,कभी हमने किसी का साथ खो दिया तो कभी अपनी ज़िन्दगी को यूँ ही जाया करते रहे! उस दौरान हमने कई दुःख से भरे आंसू में डूबें हुए समय को काटा है, ये सारी बाते वर्तमान में याद आती है और बताने को मन करता है और नहीं भी करता! वर्तमान समय में बीते दिनों की यादें मुस्कराहट और दिल में दर्द दोनों लेकर आती है! अपने बीते समय में जो हमारे किये गए व्यर्थ कामों से हमारा आज संवर नहीं पाया इसका दोष भी हम किसी और को दे नहीं सकते, इन्ही दर्द की गूंज दिल के अन्दर ही टकराती रहती है! खैर कुछ भी हम कर ले बीते दिन,बीते पल को हम बदल नहीं सकते है अफ़सोस ये यादें भी जब तक ज़िन्दगी है बरकरार रहती है!
इन्ही मन के अन्दर उठते ज्वार-भाटाओं के कश्मकश से भरी कविता को पढके इक प्रेरणा-सी मिलती है!
हरिवंशराय बच्चन साहब को मेरा कोटि-कोटि नमन!

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