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Anjum Rehbar Ki Shaayri | अंजुम रहबर की शायरी | love shaayri

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मैंने किसी महिला शायर को कभी अंजुम रहबर जी से पहले नहीं सुना था! जब मैं 14-15 वर्ष का था तब मैंने पहली बार टीवी पर किसी शायरा की आवाज़ में शेर और कविता सुनी थी,ये आवाज़ अंजुम रहबर साहिबा की थी! मेरी माँ और मैं दोनों टीवी से चिपक से गए थे, हालाँकि मुझे उतना अच्छा उर्दू का ज्ञान उस समय नहीं था जितना वर्तमान में है और मेरी माँ को तो न कविता का और उर्दू से ही दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध था!  जो पहली बार आवाज़ मेरे कानों में पड़ा था वो शायरी के ये चंद पंक्तियाँ थी! credit- CANVA जिन के  आँगन    में    अमीरी    का    शजर    लगता  है उन का  हर  ऐब    ज़माने    को    हुनर    लगता    है चाँद    तारे    मिरे    क़दमों    में    बिछे    जाते   हैं ये    बुज़ुर्गों    की    दुआओं    का    असर  लगता    है माँ    मुझे    देख    के    नाराज़    न  हो    जाए    कहीं सर    पे    आँचल  नहीं  होता  है  तो    डर    लगता    है  

Harivansh Rai Bachchan's Poem | हरिवंशराय बच्चन की कविता | sad & depth

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मैंने जब सबसे पहले कविता लिखना शुरू किया तो मैंने खुदसे कहा कि अगर लिखना है तो आदरणीय  हरिवंशराय बच्चन की तरह ही लिखना है! खैर मैं उनके पाँव की धूल भी नहीं हूँ पर लिखते वक्त हमेशा उनका ख्याल जरुर आ जाता है! हरिवंशराय बच्चन साहब की हर रचना हिंदी को शोभित करती बिंदी का काम करती है, हिंदी भाषा और कविता को जो सही मायने में आसमान पर लेकर गए उनमें एक ऊँचा नाम  हरिवंशराय बच्चन सुनहरे अक्षरों में आता है! इस महान रचनाकार के लिए मेरे पास शब्दों की कमी हो सकती है परन्तु भाव अनंत है! चलिए अब अधिक वार्तालाप न करते हुए पूजनीय हरिवंशराय बच्चन साहब की कविता की ओर रुख करते है! ये कविता मेरे मन के बहुत निकट है...उदासी में भी हकीकत को स्वीकार कर लेना, नकारात्मकता  में भी सकारात्मकता  की ओर बढ़ना और बीते कल को जान कर जीना, ये सभी रस हमें इस कविता में प्राप्त होते है क्या भूलूं, क्या याद करूँ मैं  अगणित उन्मादों के क्षण हैं, अगणित अवसादों के क्षण हैं, रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं! क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! याद सुखों की आँसू लाती, दुख की, दिल भारी कर जाती, दोष किसे दूँ जब अपने से,